पत्र -1
श्रद्धेय……………….………
सादर प्रणाम ,
क्षमा सहित , सीधे ही विषय पर केंद्रित हो रहा हूँ। उस दिन हमारा – आपका संवाद अधूरा ही रह गया। पहले भूमिका , तिस पर बार-बार विषयान्तर ही वह कारण रहा जिससे मूल विषय पर वार्ता आगे न बढ़ सकी। परस्पर आत्मीय संबंधों की बात-चीत में ऐसा हो जाना स्वाभाविक ही था , तिस पर भी हम अनुग्रहीत हैं और परमात्मा के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं कि शेष वार्ता……………. का अनुगामी पथ निर्मित हो सका ।
आपको अपना अग्रज कहूँ ! मित्र कहूँ ! ऐसे सभी सम्बोधन वह व्यक्त करने लिए पर्याप्त नहीं जान पड़ते जो कहना चाहता हूँ । वास्तविकता यह है कि जीवन स्वयं में यात्रा का ही एक रूप है और इस यात्रा के पड़ाव – ठहराव का हम सबको कोई पता नहीं होता है। हम चाहे जितना प्रयास करके इसकी सुचारू गति और पाथेय का यथेष्ट निर्मित करें , स्वाभाविक तौर पर जीवन और इसकी कालक्रमबद्धता समझ और पकड़ दोनों के परे है ।
आपने जिन-जिन स्थितियों-परिस्थितियों और जिम्मेदारियों को व्यक्त किया उन सब के मूल में एक बात मेरी पकड़ में आ सकी कि शायद आपकी दृष्टि वह नहीं पकड़ पा रही है जिसे आपको अवस्य पकड़ना चाहिए । आप उस सत्य के विषय में बोध नहीं कर पा रहे हैं जहां आपको अविलम्ब तारतम्यता स्थापित करनी ही होगी ।
यदि स्वयं मेरे व्यक्तित्व और जीवन को जानना हो तब मेरी वेबसाइट , मेरे भाषण के अंश , मेरे पत्र , लेख आदि किसी व्यक्ति को थोड़ी बहुत सहायता कर सकते हैं , किन्तु आपके विषय में जानने के लिए और क्या-क्या निरपेक्ष विषय-वस्तु उपलब्ध है , इसका मुझे पता नहीं है , जो कुछ भी जाना-सुना-समझा है , मेरा अनुभव है कि आप विश्वस्नीय, सहृदयी और कलुषहीन हैं और यही कारण है की एक बड़े परमात्म कार्य हेतु आपको अनुग्रह के साथ सम्मिलित करना चाहता हूँ ।
जिस दृष्टि के साथ आप सोच रहे हैं वह परिपूर्ण नहीं है आपको तनिक आगे बढ़कर सोचना होगा , जिस दयालु और दक्ष महिला की रिक्तता के बोध में आपका जीवन कदाचित अपूर्ण जैसा हो गया है , वे हमारे लिए भी प्रेममूर्ति और आदरणीय ही थीं और मेरी संकुचित समझ इतना तो देख ही पाती है की “वे” आपके राजनीतिक जीवन के उत्थान के लिए ना केवल सतत प्रयासरत रहीं थी , अपितु संकल्पबद्ध भी थीं , किन्तु दैव योग…………. ही श्रेष्ठ है ऐसा , मानने – समझने के कारण और आगे कुछ न कह सकूँगा ।
नियति की क्या मर्जी है यह हम आप कोई नहीं जानते किन्तु क्या यह यथोचित होगा कि हम लोग न हो चुके आत्मीयजनों के यथेष्ट को अपनी मनमाफिक गलत परिभाषाएं दें
जिनका पूरा जीवन समर्पित रहा था , संकल्पबद्ध था , आपके राजनैतिक जीवन के उन्नयन और उत्थान के लिए उनको आप क्या श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं यह आपको सोचना होगा ।
जो आप कर रहे हैं वह कम महत्वपूर्ण नहीं है , किन्तु इसके आगे भी कुछ और अधिक करना है ।
समय मूलयवान है और ताक़तवर भी , इसे समझने का प्रयत्न कीजिये । अगर कुछ करने से कुछ होता , तो अब तक शायद कुछ हो ही गया होता , मेरे देखे अभी तो सब , न कुछ जैसा ही है , क्या इतने भर के लिए ही राजनैतिक यात्रा शुरू की गयी थी ।
बात से बात नहीं जीत सकती – तर्क से तर्क नहीं जीत सकता किन्तु विस्वास से सब जीता जा सकता है ।
आप परिपक्व हैं , अनुभवी हैं , पर मुझे लगता है यह परिपक्वता और अनुभव सहायक की बजाय बाधा बन रही है , एक बार इनका सही उपयोग कीजिये इनके उचित सारथित्व में आप उचित निर्णय ले सकेंगे । याद रखिये अंततः आप महत्वपूर्ण हैं न की अनुभव और न ही परिपक्वता ।
आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी अपने लक्ष्य् को अवस्य ही प्राप्त करेगी , यदि व्यक्ति या समूहों के करने से ऐसा होना होता , तो शायद न ही होता , किन्तु आदर्श की स्थापना परमात्म कार्य है और परमात्मा का कार्य स्वयमेव हो जाता है , करना नहीं पड़ता इसे सत्य मानकर निरपेक्ष भाव और दृष्टिकोण के साथ आपको सहयात्री होने का आग्रह करता हूँ ।