२६ जनवरी

 

आज २६ जनवरी है। हमारे इस महान् भारतवर्ष को आजाद हुये पूरे ४८ साल ४ महीने १० दिन हो चुके हैं और आज इसके सँविधान लागू होने की ४५वीं वर्षगांठ मनायी जा चुकी है। आज के इस गणतन्त्र दिवस पर हम सभी को पूरे मनोयोग के साथ इस बात पर चिन्तन करना चाहिये कि हम कहां जा रहें हैं?

कहने की बात नहीं है, यह वही भारतवर्ष है, जहां के लोग अपनी पुरानी गौरवशाली परम्पराओं और मर्यादा तथा सुसंस्कृत अतीत की दुहायी देते नहीं थकते और पुरानी बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते वक्त ये भूल जाते हैं कि आज वे जहां पर खड़े हैं वहां से ये पूरा विश्व इतना आगे निकल चुका है कि उसके समकक्ष पहुंचना असम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन अवश्य है। पुरानी बातें, पुरानी परम्परायें तथा गौरवशाली अतीत किसी का पेट नहीं भर सकते है, कहने का तात्पर्य यह है कि भूख को शान्त करने के लिये पेट में भोजन का होना आवश्यक है।

हम आज के दिन का कितनी बेसब्री से इंतजार करते हैं, इसलिये नहीं कि आज गणतन्त्र दिवस है, बल्कि इसलिये कि आज इसी बहाने एक दिन और छुट्टी मिलगी। ये हमारी दुर्बलता और आरामखोरी तथा अनियमितता एवं अकर्मण्यता का ही परिणाम है कि आज चहुंओर बद्हाली, बदइंतजामी तथा अव्यवस्थाओं एवं भ्रष्टाचार तथा भूख और झूठ का सामंजस्य फैला हुआ है। प्रत्येक व्यिक्त अपने को खुशी और सुखी दिखायी देने और रखने का असफल और झूठा प्रयत्न करने में लगा हुआ है।

कहने को तो आज २६ जनवरी है। रेडियो और टी०वी० तथा अनेकों समाचार माध्यमों में ये जोर-शोर से प्रसारित किया गया कि पूरे भारतवर्ष में गणतन्त्र दिवस धूमधाम से मनाया गया, जो कि वास्तविकता से एकदम अलग है, सिवाय इसके कि विद्यालयों में छात्रगण लड्डू के लालचवश अपने-अपने विद्यालयों में जबरदस्ती गये और सरकारी एवं सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में वहां के मुख्याधिकारियों के द्वारा राष्ट्रीयध्वज लहराकर दो-चार शब्द देश और उसकी स्थिति एवं पुराने व्यिक्तत्वों के बारे में बोल दिया गया जिसमें कि कर्मचारियों की संख्या नगण्य थी।

आम आदमी २६ जनवरी और १५ अगस्त को भूल चुका है। उनकी व्यस्त और जिन्दगी से जूझती जिन्दगी में इन सबका कोई महत्व नहीं है, रही बात उनकी जो सामर्थ्यवान है तो उनको इन सबसे कुछ लेना-देना नहीं है। वे अपनी और अपने सम्बन्धियों की छोटी से छोटी खुशी पर आपको मिठाई खिला सकते हैं, परन्तु मजाल है कि कभी राष्ट्रीय दिवसों और त्योहारों के उपलक्ष्य में आपको बधाई तक देने की जहमत उठावें।

कितनी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को मन में संजोेकर उन वीर बलिदानियों ने इस भारतवर्ष को आजाद कराने में अपने तन-मन-धन की बलि चढ़ायी थी। हमें स्वयं से पूछना होगा कि हम उनके सपनों को पूरा करने में कहां तक सफल हुये हैं।

किन क्षेत्रों में हम कितना आगे बढ़े और किन क्षेत्रों में हम कितना पीछे रह गये ये तो एक अलग विषय है, परन्तु जो सम्मुख उपस्थित है, उसके अनुसार हम भले ही पहले से अच्छी और सुव्यवस्थित स्थिति में आज हों, परन्तु वर्त्तमान विश्व के परिदृश्य में हम अपने समकक्ष राष्ट्रों से इतना पीछे रह गये हैं कि उन्हें पकड़ना मुश्किल है। हमें उन समस्त कारणों को खोजकर दूर करना होगा, जिनके कारण हम पीछे रह गये हैं।

आज के दिन हमें एक बार फिर तन-मन-धन से यह संकल्प लेना चाहिये कि हम भारतवर्ष की श्रेष्ठतम् मर्यादाओं और आचार संहिता में सम्मान और आस्था व्यक्त करते हुये, अपने द्वारा किये गये प्रत्येक प्रयत्नों के मूल में अपने भारतवर्ष की प्रगति का ही स्थान रखेंगे और अपने उन महापुरूषों और बलिदानियों के द्वारा की गयी कल्पनाओं को साकार रूप देने का हर संभव प्रयत्न करेंगे, जिससे कि हमारा ये भारतवर्ष द्रुतगामी से विकास की दौड़ में आगे बढ़कर सम्मानजनक स्थान प्राप्त करने में सफल हो सके।

 

 

बी. डी. त्रिपाठी

२६-०१-१९९५