सत्रहवीं लोकसभा के गठन के बाद भारत में यह आम चर्चा है कि विपक्ष अपनी भूमिका का सही निर्वाह करें, विचारणीय बिंदु यह है कि आखिर सही भूमिका है क्या-? राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के पिछले 5 वर्षों में विपक्ष ने जो भूमिका निभाई क्या वह त्रुटिपूर्ण थी या फिर औचित्यहीन हीं थी और यदि थी तो आगे उससे अधिक अच्छे प्रदर्शन की संभावनाओं को जनमत नें ही ध्वस्त कर दिया है और यदि प्रदर्शन अच्छा था तो सवाल यह उठता है कि जनता को क्यों नहीं रास आया ।
लोकतंत्र में जनमत ही सर्वोपरि है और एक बड़े जनमत का फैसला यही है कि विपक्ष चुपचाप सारा तमाशा देखे, सही मायने में अब भारत में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के इस दूसरे कार्यकाल में अभी कम से कम 3 वर्ष के लिए सारे विपक्ष को यही चाहिए कि वह चुपचाप समाधिस्थ अवस्था में चले जाएं, सदन में भी उपस्थिति की जरूरत नहीं है, सरकारी सुविधाओं, वेतन-भत्ते का त्याग करें, सरकार को लिखकर दे दे कि उनके हिस्से की सभी सुख-सुविधाएं, वेतनभत्ते राष्ट्र निर्माण में लगा दिए जाएं । अब हम सभी लोग 3 साल आम जनमानस के बीच रहेंगे उनके दुखों के मूक साथी और अविचल दृष्टा बनेंगे उन्हें यह याद दिलाएंगे, एहसास कराएंगे कि जिनके पास सत्ता है जिम्मेदारी उनकी है, हम तो दृष्टा हैं और आपके पास साक्षी भाव से उपलब्ध हैं ।
यही नहीं किसी भी स्तर के मीडिया संस्थान में विपक्ष का कोई भी आदमी ना मिले, ना बयान दे, इनके प्रति, उनकी नीतियों के प्रति, इन के निर्णयों के प्रति, पूर्णतया निरपेक्ष हो जाए ।
यह विपक्ष से खुराक लेते हैं, विपक्ष के इतिहास की आलोचना करते हैं, विपक्ष की गलतियां बताते हैं, और वहीं से इनको खुराक मिलती है । यह मरें, यह खत्म हों, यह परास्त हों, इसलिए इनकी खुराक बंद करनी होगी, और खुराक बंद हो, इसलिए कुछ विशिष्ट प्रकार का असहयोग ही एकमात्र उपाय है, कम से कम आने वाले इतिहास में विपक्ष इनके पाप के भागीदार होने से बच जाएगा ।
ये सत्ता के मद में चूर होकर संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट कर रहे हैं, नष्ट करनें दीजिये, यह देश को बाजार बना रहे हैं, बनाने दीजिए, यह एक निरपेक्ष राष्ट्रीय चरित्र का नाश कर रहे हैं, करने दीजिए, सैन्य शक्तियों का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं, करने दीजिए, उनकी नीतियों से सेना के जवान मर रहे हैं उनकी शहादत में आप भी लोक व्यवहार अपनाइये , दुख, प्रकट कीजिए लेकिन ” निश्चल ” बने रहिये ।
जनता के साथ दृष्टा बनकर खड़े रहने से क्या होगा-? जानते हैं ! यह अपने खुद के अन्तर्विरोध से ही नष्ट हो जाएंगे, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इनका चरित्र, इन का आचरण, भारत देश के मूल चरित्र से, भारत देश के आचरण विधि से, मेल नहीं खाता ।
पैसे-प्रचार-प्रलोभन और तिकड़मबाजी से पनपे और चुने हुए ये लोग अधिक दिनों तक नहीं टिक पाएंगे ।