आखिर बीजेपी पहले से ज्यादा बहुमत में कैसे आयी -? इस सवाल के जवाब में आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी के श्रीमान राष्ट्रीय अध्यक्ष के बेलौस बोल-:
बेहिसाब पैसे के बल पर खड़े किये गये प्रचार तंत्र के बल पर जीत हांसिल की गयी है, चुनाव आयोग का निराला नियम है की पार्टियों के खर्च पर कोई पाबन्दी नहीं है, इस नियम की आड़ में बीजेपी हर सीट पर बेहिसाब पैसा खर्च कर रही थी, अकेले वाराणसी में पीएम मोदी के लिये उनकी पार्टी ने 550 करोड़ से ज्यादा खर्च किया होगा, बीजेपी के मुकाबले सभी पार्टियों के पास खर्च करने के लिये दसवाँ हिस्सा भी नहीं था, चौथे चरण का चुनाव प्रचार बंद होने के बाद, विपक्षी दलों के स्टार प्रचारकों को हेलीकॉप्टर मिलना संभव हो पाया, आमजन की छोड़ दीजिये, स्वयं पार्टी कार्यकर्ता जनों का मिजाज ऐसा है की प्रचुर मात्रा में जेब खर्च मिले, तब वे उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहते हैं, अन्यथा कन्नी काटते हैं, बहाना बनाते हैं की वे अपने निजी कार्य में व्यस्त हैं, स्पष्टतया तुलना करते हुये कहते हैं की बीजेपी में तो इतना मिल रहा है ! बिना पैसा के चुनाव न हो पायेगा !
अब दूसरी समाजशाष्त्रीय बात जानिये-:
कथनी-करनी में अंतर के चलते पिछले एक दशक में सवर्णों में आरएसएस की स्वीकार्यता घटी है, कुछ महत्वाकांछी और व्यावसायिक वृत्ति वाले सवर्णों (अथवा वे जिनका शाशन-प्रशाशन से प्रत्यक्ष-परोक्ष हित जुड़ा हुआ है) को छोड़ दें तो आम पढ़ा लिखा सवर्ण ओपन माइंडेड और लिबरल हुआ है, अब वो आरएसएस के झांसे और बहकावे में नहीं फंसता, पिछले 05 वर्षों की पूर्ण बहुमत वाली सत्ता में पॉवर और पैसे के बल पर आरएसएस नें अपना कार्यक्षेत्र गाँवों की ओर बढ़ा लिया है, बातचीत में वे अब अपनी “जी” लगानें वाली लोकलुभावन शैली से पिछड़े और दलित वर्ग के लोगों को तेजी से आकर्षित कर रहे हैं, और जिस कारण वो भोला-भाला दलित और पिछड़ा वर्ग जिसे “जी” का मनमोहक सम्बोधन मिल रहा है, जरूरत पड़ने पर सुविधा भी उपलब्ध हो रही है, वो इनके भ्रम जाल का आसान शिकार है, उसे समझाकर ब्रेनवॉश कर दो की भारत की धरती पर सारी समस्याओं की जड़ मुसलमान ही हैं, उस संघी बन चुके दलित और पिछड़े वर्ग को जब अपनी जाति – बिरादरी का व्यक्ति जीतता हुआ नहीं दिखाई देता तब वो आरएसएस और बीजेपी की पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को वोट कर देता है.
तीसरा कारण है दूषित मतदान प्रक्रिया और गणना प्रक्रिया -:
एक लोकसभा क्षेत्र में सत्ता धारी दल के प्रत्याशी अथवा धनबली-बाहुबली प्रत्याशी को छोड़ दिया जाये तो कोई भी प्रत्याशी 40% बूथों से अधिक पर “प्रबंधन” कर ही नहीं सकता और इस अनदेखी का फायदा पैसे और संगठन के बल पर आरएसएस उठा रही है, पोलिंग पार्टियां जब दूरदराज के बूथों पर पहुँचती हैं तो उनके आराम-आनंद और आवाभगत का पता लगाइये सब पहले से पैसे और पॉवर वाले प्रत्याशी की ओर से मैनेज हुआ रहता है, जो थोड़े मुखर नौजवान होते भी हैं उन्हें पुलिस भय दिखाया जाता है या अन्त में यह कहकर चुप करा दिया जाता है की “नेतवन तौ जीतय-हारय के बाद मिलिहैं न, हमय- तुहैंय तौ साथय रहैक है, काहें नरक मचाय हौ एक यही बूथ से तौ जीत हार होई न” इस कारण वो एक आदमी भी पोलिंग स्टेशन से दूर चला जाता है।
गणना प्रक्रिया के बारे में बताऊं की – जिस EVM में बूथ पर वोट पोल हुये थे उसी EVM की गिनाई हो रही है या कोई और EVM गणना के लिए सामनें कर दी गयी है इसका पता नहीं लग पाता शुरू में तो कुछ के मिलान बोलकर बताये जाते हैं लेकिन पहले ही राउंड के बाद सब राम भरोसे हो जाता है चुनाव अधिकारी खुद अपने हाथों से 5 ईवीएम एक लाइन से उठाकर गिन देता है, ईमानदारी की बात ये है की वे कर क्या रहे हैं यह भी समझ में नहीं आता, साथ में RO होता था, एजेंट को छूने नहीं देते, वी वी पैट पर्चियों वाली मशीनों की काउंटिंग सबसे अंत में कराई गयी , जब मजबूत दलों के प्रत्याशियों को प्राप्त मतो का अन्तर बढ़ने लगा, तो एक-एक कर वे और उनके समर्थक मतगणना स्थल से बाहर चले गये, छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों और उनके एजेंट्स की कोई सुनवाई नहीं होती, (आखिर वे आपस में भी एक दुसरे खिलाफ प्रतिद्वंदी ही होते हैं) और उनसे मनमानें तौर पर हस्ताक्षर करा लिये जाते हैं।
जो शिकायतें आदि होती भी हैं वे अखबारों के किसी कोनें में जाती हैं, क्योंकि जीतने वाला ही बड़ा है अंत में केवल इतना कहूंगा की पूरा-पूरा तंत्र ही दूषित है…….. ( आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी वेबसाइट- https://www.aadarshwadisandesh.in पार्टी अध्यक्ष की वेबसाइट- https://www.bdtripathi.com )